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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 इतिहास अध्याय 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
प्रश्न 1. वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं ?
उत्तर: राजनीति स्तर पर जर्मनी का वाइमर गणराज्य कमज़ोर और अस्थिर था। वाइमर गणराज्य में कुछ ऐसी कमियाँ थी जिनके कारण गणराज्य कभी भी अस्थिर और तानाशाही का शिकार बन सकता था, जो इस प्रकार है-
(i) पहली कमी अनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थीl इस प्रवधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना बहुत मुश्किल होता जा रहा था। यहाँ हर बार गठबंधन सरकार सत्ता में आ रही थी।
(ii) दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करके और अध्यादेशों के ज़रिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था।
(iii) अनुच्छेद 48 के फलस्वरुप ही अपने छोटे से जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रिमंडलों के हाथों में रहा और उनकी औसत 239 मैं दिन से ज्यादा नहीं रही।
(iv) अनुच्छेद 48 के उदारपूर्वक इस्तेमाल के बाद भी गणराज्य के संकट दूर नहीं हो पाए थे।
(v) समस्या का कोई समाधान नहीं खोज पाने के कारण लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास खत्म होने लगा।
या
प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय और सम्राट के पद त्याग के बाद वाइमर में राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई और लोकतांत्रिक संविधान पारित किया गया। लेकिन यह नया वाइमर गणराज्य जर्मनी के अधिकांश लोगों को रास नहीं आया। अत: वाइमर गणराज्य की मुख्य समस्याएं निम्न प्रकार थीं –
1. प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत जर्मनी पर थोपी गई वर्साय की कठोर एवं अपमानजनक संधि के लिए अधिकांश जर्मनवासी वाइमर गणराज्य को ही जिम्मेदार मानते थे।
2. रुसी क्रांति की सफलता से जर्मनी के कुछ भागों मे साम्यवादी प्रभाव तेजी से बढ़ा।
3. युद्ध अपराधी के रुप में जर्मनी पर 6 अरब पाउंड का जुर्माना लगाया गया जिसे चुकाने में वाइमर गणराज्य असमर्थ था।
4. जर्मनी द्वारा हर्जाना चुकाने से इंकार करने पर फ्रांस ने जर्मनी के औद्योगिक क्षेत्र रुर पर कब्जा कर लिया जिसके कारण वाइमर गणराज्य की प्रतिष्ठा को बहुत हनी।
5. 1929 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से बढ़ी मंहगाई को नियंत्रित करने में वाइमर गणराज्य असफल रहा।
प्रश्न 2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी ?
उत्तर: जिस तरीके से वाइमर गणराज्य ने वर्साय संधि पर आसानी से सहमति दे दी थी उससे अधिकतर जर्मनी वासी खुश नहीं थे। युद्ध संबंधित हर्जाने की भारी राशि चुकाने के कारण अर्थव्यवस्था खराब हालत में थी और लोगों के कष्ट बढ़े हुए थे। ऐसे में हिटलर ने अपने आप को किसी मसीहा की तरह पेश किया। भाषण देने की कला में उसका कोई जोड़ नहीं था। अपने लोकलुभावने वादों से उसने जनता का दिल जीत लिया और 1930 आते आते नात्सीवाद लोकप्रिय होने लगा।
या
जर्मनी में नाजीवाद की लोकप्रियता के मुख्य कारण इस प्रकार थे :
(क) वर्साय की संधि : प्रथम विश्व युद्ध में हार के बाद जर्मनी को वर्साय में शांति संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े। यह संधि जर्मनों के लिए इतनी कठोर तथा अपमानजनक थी जिसे वे अपने दिल से स्वीकार नहीं कर सकते थे और अंततः इसने जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद को जन्म दिया। जर्मनी के लोग हिटलर को जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः दिलाने वाले प्रतीक के रूप में देखते थे।
(ख) आर्थिक संकट : 1929-1933 के बीच के वैश्विक आर्थिक संकट से जर्मन अर्थव्यवस्था पर सबसे गहरी मार पड़ी। देश अति मुद्रास्फीति के दौर से गुजर रहा था। इस समय के दौरान नाजीवाद जनआंदोलन बन गया। नाजी प्रोपेगेंडा ने बेहतर भविष्य की आशा जगाई।
(ग) राजनैतिक उथल-पुथल : जर्मनी में बहुत से राजनैतिक दल थे जैसे राष्ट्रवादी, राजभक्त, कम्युनिस्ट, सामाजिक लोकतंत्रवादी आदि। यद्यपि लोकतंत्रात्मक सरकार में इनमे से कोई भी बहुमत में नहीं था। दलों में मतभेद अपने चरम पर थे। इसने सरकार को कमजोर कर दिया और अततः नाजियों को सत्ता हथियाने का अवसर दे दिया।
(घ) जर्मनों को लोकतंत्र में बिल्कुल विश्वास नहीं था : प्रथम विश्व युद्ध के अंत में जर्मनी की हार के बाद जर्मनों का संसदीय संस्थाओं में कोई विश्वास नहीं था। उस समय जर्मनी में लोकतंत्र एक नया व भंगुर विचार था। लोग स्वाधीनता व आजादी की अपेक्षा प्रतिष्ठा और यश को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने खुले दिल से हिटलर का साथ दिया क्योंकि उसमें उनके सपने पूरे करने की योग्यता थी।
(ङ) वाइमर गणराज्य की विफलता : प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार तथा व्रर्साय की संधि के बाद पूरे जर्मनी में भ्रम व्याप्त था। वाइमर गणराज्य देश के आर्थिक संकट का हल निकालने में असमर्थ रहा। इसने नाजियों को अपने पक्ष में अभियान चलाने का एक सुनहरा मौका प्रदान किया।
(च) हिटलर का व्यक्तित्व : हिटलर एक जबर्दस्त वक्ता, एक योग्य संगठक, उपायकुशल एवं काम करने वाला था। वह अपने जोश भरे शब्दों से जनता को अपने पक्ष में कर लेता था। उसने एक शक्तिशाली राष्ट्र का गठन करने, वर्साय की संधि के अन्याय का बदला लेने और जर्मनों की खोई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का वादा किया। वास्तव में उसके व्यक्तित्व तथा कार्यों ने जर्मनी में नाजीवाद की लोकप्रियता में बहुत योगदान दिया।
प्रश्न 3. नात्सी सोच के खास पहलू कौन-से थे ?
उत्तर: नात्सी सोच के खास पहलू इस प्रकार थे :
(क) नाजियों की दृष्टि में देश सर्वोपरि है। सभी शक्तियाँ देश में निहित होनी चाहिएं। लोग देश के लिए हैं न कि देश लोगों के लिए।
(ख) नाजी सोच सभी प्रकार की संसदीय संस्थाओं को समाप्त करने के पक्ष में थी और एक महान नेता के शासन में विश्वास रखती थी।
(ग) यह सभी प्रकार के दल निर्माण व विपक्ष के दमन और उदारवाद, समाजवाद एवं कम्युनिस्ट विचारधाराओं के उन्मूलन की पक्षधर थी।
(घ) इसने यहूदियों के प्रति घृणा का प्रचार किया क्योंकि इनका मानना था कि जर्मनों की आर्थिक विपदा के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।
(ङ) नाजी दल जर्मनी को अन्य सभी देशों से श्रेष्ठ मानता था और पूरे विश्व पर जर्मनी का प्रभाव जमाना चाहता था।
(च) इसने युद्ध की सराहना की तथा बल प्रयोग का यशोगान किया।
(छ) इसने जर्मनी के साम्राज्य विस्तार और उन सभी उपनिवेशों को जीतने पर ध्यान केन्द्रित किया जो उससे छीन लिए गए थे।
(ज) ये लोग ‘शुद्ध जर्मनों एवं स्वस्थ नोर्डिक आर्यों के नस्लवादी राष्ट्र का सपना देखते थे और उन सभी का खात्मा चाहते थे जिन्हें वे अवांछित मानते थे।
या
(i) हिटलर के अनुसार प्रत्येक जीवित वस्तु को फलने फूलने के लिए अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है। इसलिए एक राज्य को भी आगे बढ़ने के लिए अधिक क्षेत्रफल और नई सीमाओं की आवश्यकता होती है।
(ii) इससे मातृ देश का क्षेत्रफल भी बढ़ेगा। क्षेत्र के आकार में वृद्धि होने से शक्ति एवं सम्मान में भी बढ़ोतरी होगी।
(iii) नए इलाकों में जाकर बसने वाले जर्मन लोगों को अपने जन्मस्थान के साथ गहरे संबंध बनाए रखने में मुश्किल भी नहीं आएगी।
(iv) इस तरीके से जर्मन राष्ट्र के लिए संसाधन और बेहिसाब शक्ति इकट्ठा किए जा सकते हैं तथा मातृदेश के लिए अतिरिक्त संसाधनों को एक जगह इकट्ठा किया जा सकता है।
(v) हिटलर जर्मन सीमाओं को पूरब की ओर फैलाना चाहता था ताकि सारे जर्मनों को भौगोलिक दृष्टि से एक ही जगह पर इकट्ठा किया जा सके।
प्रश्न 4. नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा ?
उत्तर: नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार निम्नलिखित कारणों से रहा-
(i) नात्सी विश्व दृष्टिकोण को फैलाने के लिए हिटलर ने मीडिया का बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल किया। इस प्रचार में नात्सियों की यहूदियों के प्रति घृणा का समावेश था। ग्योबल्स, हिटलर के प्रचार मंत्री थे।
(ii) नात्सी विचारो को फैलाने के लिए तस्वीरों, रेडिओ, पोस्टर, आकर्षक नारों और इश्तहारी चर्चा का खूब सहरा लिया जाता था।
(iii) नात्सी प्रचार के अनुसार यहूदी एक अवांछित नस्ल था जिसे ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और वे इसमें सफल भी रहे। यहूदियों को शेष समाज से अलग-थलक कर दिया गया।
(iv) नात्सी प्रचार में यहूदियों के प्रति ईसाई धर्म में मौजूद परंपरागत घृणा को भी एक आधार बनाया गया। ईसाइयों का आरोप था कि यहूदियों ने ही ईसा मसीह को मारा था।
(v) यहूदियों को सूदखोर कहकर गाली दी जाती थी।
(vi) प्रचार फिल्मों में भी यहूदियों के प्रति नफरत करवाने पर जोर दिया गया। उन्हें चूहा और कीड़ा आदि नामों से संबोधित किया गया।
(vii) हिटलर की दृष्टि में यहूदियों को पूरी तरह से खत्म कर देना ही इस समस्या का एकमात्र हल था।
या
नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ़ नफ़रत पैदा करने में इतना असरदार निम्न प्रकार से रहा:
(क) उन्होंने इस बात का प्रचार किया कि यहूदी घटिया शारीरिक रचना वाले लोग हैं। उन्हें समाज के अवांछित वर्ग का दर्जा दिया गया।
(ख) नात्सियों ने लोगों को बताया कि यहूदी ईसा मसीह के हत्यारे हैं । अतः वे घृणा के पात्र हैं।
(ग) नात्सियों ने कहा कि यदि धन के लोभी हैं वे लोगों को पैसा उधार देकर अत्याधिक ब्याज वसूलते हैं।
(घ) उन्होंने कहा कि यहूदियों को ईसाई बना कर भी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। समस्या का समाधान तो उनके पूर्ण विनाश में निहित है।
नात्सियों के इस प्रचार से समझ जर्मनी में यहूदियों के प्रति घोर घृणा का वातावरण तैयार हो गया। अतः यहूदियों पर भीषण अत्याचार किए गए। उनकी बड़े पैमाने पर हत्याएं की गई और उन्हें देश छोड़ने पर विवश कर दिया गया।
प्रश्न 5. नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रांति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें। फ्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ
उत्तर: नाजी जर्मनी में महिलाओं को पुरुषों से अलग माना जाता था। नाजियों को पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकारों में विश्वास नहीं था। उन्हें लगा कि समान अधिकार समाज को नष्ट कर देंगे। युवा महिलाओं को कहा गया कि वे अच्छी मां बनें, घर की देखभाल करें और शुद्ध – खून वाले आर्यन बच्चों की देखभाल करें। निर्धारित आचार संहिता से विचलित होने वाली महिलाओं को कड़ी सजा दी गई। नाजी जर्मनी में महिलाओं के विपरीत, फ्रांस में महिलाओं ने फ्रांसीसी क्रांति के दौरान खुद को मुखर किया। कई महिला क्लबों का गठन किया गया। महिलाओं ने पुरुषों के समान अधिकार की मांग की। सरकार ने महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कानून पेश किए। लड़कियों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई। नाजी महिलाओं के विपरीत जो अपने घरों तक ही सीमित थीं, फ्रांसीसी महिलाओं को काम करने और व्यवसाय चलाने की स्वतंत्रता दी गई थी। फ्रांसीसी महिलाओं ने भी मतदान का अधिकार जीता जो उनके नाजी समकक्षों ने अस्वीकार कर दिया था।
प्रश्न 6. नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए ?
उत्तर: 1933 में एडोल्फ हिटलर जर्मनी का चांसलर बना। उसने अपने लोगों पर पूर्ण नियंत्रण पाने के लिए कई कानून पारित किए। 28 फरवरी, 1933 को फायर डिक्री पारित किया गया था।
- डिक्री ने भाषण, प्रेस और विधानसभा की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया।
- एकाग्रता शिविर लगाए गए और कम्युनिस्ट को वहां भेजा गया। 3 मार्च, 1933 को सक्षम अधिनियम पारित किया गया।
- अन्य सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
- नाज़ी पार्टी ने अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना और न्यायपालिका को पूर्ण नियंत्रण में ले लिया।
- हिटलर डिक्टेटर बन गया।
लोगों को नियंत्रित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा बल का गठन किया गया था। पुलिस, स्टॉर्म ट्रूपर्स, गेस्टापो, एसएस और सुरक्षा सेवा को नाजियों के तरीकों को समाज को नियंत्रित करने और आदेश देने के लिए असाधारण अधिकार दिए गए थे। पुलिस बलों ने शक्तियां हासिल करने के लिए शक्तियों का अधिग्रहण किया और जल्द ही नाजी राज्य ने अपने लोगों पर कुल नियंत्रण स्थापित कर लिया।
या
सन् 1933 में जर्मनी का चांसलर बनने के बाद हिटलर ने राज्य एवं जनता पर नात्सियों के माध्यम से पूर्ण नियंत्रण हासिल करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए –
1. विशेषाधिकार अधिनियम, मार्च 1933 द्वारा संसद के समस्त अधिकार हिटलर को देकर राज्य में तानाशाही स्थापित कर दी गई।
2. नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और नेयनों पर पाबंदी लगा दी गई।
3. अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना और न्यायपालिका पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया ।
4. पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियंत्रण और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए।