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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 इतिहास अध्याय 8 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन
1: 1870 और 1880 के दशकों में लोग ब्रिटिश शासन से क्यों असंतुष्ट थे ?
उत्तर: 1870 और 1880 के दशकों में ब्रिटिश शासन के प्रति लोगों के गुस्से के कुछ कारण नीचे दिए गए हैं।
- 1870 और 1880 के दशकों में अंग्रेजी शासन से लोगों के असंतोष के कुछ कारण नीचे दिए गए हैं।
- 1878 में आर्म्स ऐक्ट पारित हुआ था। इस कानून ने भारत के लोगों पर हथियार रखने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- 1878 में ही वर्नाकुलर प्रेस ऐक्ट पारित हुआ था। इस कानून ने किसी भी अखबार और उसके प्रिंटिंग प्रेस को जब्त करने का अधिकार सरकार को दे दिया। यदि कोई अखबार कोई विवादित खबर छापता तो ऐसा किया जा सकता था। यहाँ पर विवादित का मतलब था अंग्रेजी शासन की आलोचना।
अथवा
1878 में आर्म्स एक्ट पारित किया गया जिसके जरिए भारतीयों द्वारा अपने पास हथियार रखने का अधिकार छीन लिया गया। उसी साल प्रेस एक्ट भी पारित किया गया जिससे सरकार की आलोचना करने वालों को चुप कराया जा सके। इस कानून में प्रावधान था कि अगर किसी अखबार में कोई आपत्तिजनक चीज छपती है तो सरकार उसकी प्रिंटिंग प्रेस सहित सारी सम्पत्ति को जब्त कर सकती है। 1883 में सरकार ने इल्बर्ट बिल लागू करने का प्रयास किया। इसको लेकर काफी हंगामा हुआ। इस विधेयक में प्रावधान किया गया था कि भारतीय न्यायाधीश भी ब्रिटिश या यूरोपीय व्यक्तियों पर मुकदमे चला सकते हैं ताकि भारत में काम करने वाले अंग्रेज और भारतीय न्यायाधीशों के बीच समानता स्थापित की जा सके। जब अंग्रेजों के विरोध की वजह से सरकार ने यह विधेयक वापस ले लिया तो भारतीयों ने इस बात का काफी विरोध किया। इस घटना से भारत में अंग्रेजों के असली रवैये का पता चलता था।
2: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस किन लोगों के पक्ष में बोल रही थी ?
उत्तर: कांग्रेस ने सरकार और शासन में भारतीयों को और ज्यादा जगह दिए जाने के लिए आवाज उठाई। कांग्रेस का आग्रह था कि विधान परिषदों में भारतीयों को ज्यादा जगह दी जाए, परिषदों को ज्यादा अधिकार दिए जाए और जिन प्रांतों में परिषद नहीं हैं वहाँ उनका गठन किया जाए। कांग्रेस चाहती थी कि सरकार में भारतीयों को भी ऊँचे पद दिए जाएं। इस काम के लिए उसने माँग की कि सिविल सेवा के लिए लंदन के साथ – साथ भारत में भी परीक्षा आयोजित की जाए।
3: पहले विश्व युद्ध से भारत पर कौन से आर्थिक असर पड़े ?
उत्तर: पहले विश्व युद्द ने भारत की अर्थव्यवस्था और राजनीति में कई बदलाव किए। महंगाई तेजी से बढ़ी थी जिससे आम आदमी के जीवन में कई समस्याएँ उठ खड़ी हुई थीं। युद्ध के कारण हर चीज की माँग बढ़ी थी, जिससे व्यवसायियों ने भारी मुनाफा कमाया था। आयात कम होने का मतलब था कि बाजार की हर माँग को भारत के व्यवसायी पूरा कर रहे थे। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत के व्यवसायियों का धंधा पहले से बेहतर हो गया।
अथवा
पहले विश्व युद्ध ने भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति बदल दी थी। इस युद्ध की वजह से ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा व्यय में भा इजाफा हुआ था। इस खर्चे को निकालने के लिए सरकार ने निजी आय और व्यावसायिक मुनाफे पर कर बढ़ा दिया था। सैनिक व्यय में इजाफे तथा युद्धक आपूर्ति की वजह से ज़रूरी कीमतों की चीजों में भारी उछाल आया और आम लोगों की जिंदगी मुश्किल होती गई। दूसरी ओर व्यावसायिक समूह युद्ध से बेहिसाब मुनाफा कमा रहे थे। इस युद्ध में औद्योगिक वस्तुओं (जूट के बोरे, कपड़े, पटरियाँ) की माँग बढ़ा दी और अन्य देशों से भारत आने वाले आयात में कमी ला दी थी। इस तरह, युद्ध के दौरान भारतीय उद्योगों का विस्तार हुआ और भारतीय व्यावसायिक समूह विकास के लिए और अधिक अवसरों की माँग करने लगे।
4: 1940 के मुस्लिम लीग के प्रस्ताव में क्या मांग की गई थी ?
उत्तर: 1940 में मुस्लिम लीग ने देश के पश्चिमोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए स्वतंत्र राज्यों “ की माँग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था।
5: मध्यमार्गी कौन थे ? वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ किस तरह का संघर्ष करना चाहते थे?
उत्तर: कांग्रेस के प्रारंभिक नेता मध्यमार्गी थे, इन नेताओं में प्रमुख थे-दादाभाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपालकृष्ण गोखले आदि।
संघर्ष का तरीका-
- इन नेताओं को विश्वास था कि अंग्रेज़ पढ़े-लिखे, सभ्य हैं, वे भारतीयों के दुख-दर्द को समझेंगे तथा उन्हें दूर करेंगे।
- ये नेता प्रार्थना-पत्रों, अपीलों, याचिकाओं के द्वारा अपनी बात अंग्रेज़ों तक पहुँचाने तथा मनवाने में विश्वास रखते थे।
- ये नेता सरकार के अत्याचारों, गलत नीतियों, दुष्प्रभावों से जनता को अवगत कराना चाहते थे।
अथवा
1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी नेता नरम विचारों के थे। इसलिए उनको मध्यमार्गी भी कहा जाता था। वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ निम्न तरह से संघर्ष करना चाहते थे:-
मध्यमार्गी नेता जनता को ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण चरित्र से अवगत कराना चाहते थे। उन्होंने अखबार निकाले, लेख लिखे और यह साबित करने का प्रयास किया कि ब्रिटिश शासन देश को आर्थिक तबाही की ओर ले जा रहा है। उन्होंने अपने भाषणों में ब्रिटिश शासन की निंदा की और जनमत निर्माण के लिए देश के विभिन्न भागों में अपने प्रतिनिधि भेजे। लेकिन मध्यमार्गियों को ये भी लगता था कि अंग्रेज स्वतंत्रता व न्याय के आदर्शों का सम्मान करते हैं इसलिए वे भारतीयों की न्यायसंगत माँगों को स्वीकार कर लेंगे। लिहाजा, कांग्रेस का मानना था कि सरकार को भारतीयों की भावना से अवगत कराया जाना चाहिए।
6: कांग्रेस में आमूल परिवर्तनवादी की राजनीति मध्यमार्गी की राजनीति से किस तरह भिन्न थी?
उत्तर: 1890 के दशक से भारत के कई लोगों ने कांग्रेस की शैली पर सवाल खड़े करने शुरु कर दिये। कई नये नेता आए जो अधिक क्रांतिकारी उद्देश्यों और तरीकों पर काम करना चाहते थे। वे मध्यमार्गी नेताओं की निवेदन की नीति की आलोचना करते थे। उनकी दलील थी कि लोगों को अंग्रेजों की अच्छी नीयत पर भरोसा न करके स्वराज के लिए लड़ना चाहिए। इन्हें गरम दल का नेता माना जाता था और ये आमूल परिवर्तनवादी राजनीति करते थे।
अथवा
बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र के बिपिनचंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे नेता ज्यादा आमूल परिवर्तनवादी उद्देश्य और पद्धतियों के अनुरूप काम करने लगे थे। उन्होंने “ निवेदन की राजनीति“ के लिए नरमपंथियों की आलोचना की और आत्मनिर्भरता तथा रचनात्मक कामों के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना था कि लोगों को सरकार के “नेक“ इरादों पर नहीं बल्कि अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए। लोगों को स्वराज के लिए लड़ना चाहिए। तिलक ने नारा दिया “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।“
7: चर्चा करें कि भारत के विभिन्न भागों में असहयोग आंदोलन ने किस-किस तरह के रूप ग्रहण किए ? लोग गांधीजी के बारे में क्या समझते थे ?
उत्तर: कुछ लोगों ने महात्मा गांधी की बातों का अपने ढ़ंग से मतलब निकाला, और ऐसे अर्थ उनकी अपनी जरूरतों से मेल खाते थे। इनमें से कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।
- गुजरात के खेड़ा के पाटीदार किसानों ने लगान की ऊँची दर के खिलाफ अहिंसक आंदोलन चलाया।
- तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों के लोगों ने शराब की दुकानों की घेरेबंदी की।
- नये वन कानूनों का विरोध करने के लिए आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के आदिवासियों और गरीब किसानों ने वन सत्याग्रह किए।
- पंजाब के गुरुद्वारों में अंग्रेजों की सहायता से भ्रष्ट महंत अपना कब्जा जमाए हुए थे। वैसे महंतों को हटाने की माँग को लेकर अकाली आंदोलन हुआ।
- असम के चाय बागानों के मजदूरों ने वेतन बढ़ाने की माँग शुरु की। असम के कई लोग गीतों में गांधी जी को गांधी राजा कहा जाने लगा।
अथवा
महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ किया। 1921-22 के दौरान असहयोग आंदोलन को और गति मिली। हजारों विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल – कॉलेज छोड़ दिए। मोतीलाल नेहरू सी. आर. दास, सी राजगोपालाचारी और आसफ़ अली जैसे बहुत सारे वकीलों ने वकालत छोड़ दी। अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियों को वापस लौटा दिया गया और विधान मंडलों का बहिष्कार किया गया। जगह -जगह लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई। 1920 से 1922 के बीच विदेशी कपड़ों के आयात में भारी गिरावट आ गई। परंतु यह तो आने वाले तूफान की सिर्फ एक झलक थी। देश के ज्यादातर हिस्से एक भारी विद्रोह के मुहाने पर खड़े थे।
भारत के विभिन्न भागों में असहयोग आंदोलन :- कई जगहों पर लोगों ने ब्रिटिश शासन का अहिंसक विरोध किया। लेकिन कई स्थानों पर विभिन्न वर्गों और समूहों ने गांधीजी के आह्वान के अपने हिसाब से अर्थ निकाले और इस तरह के रास्ते अपनाए जो गांधीजी के विचारों से मेल नहीं खाते थे। सभी जगह लोगों ने अपने आंदोलनों को स्थानीय मुद्दों के साथ जोड़कर आगे बढ़ाया। खेड़ा , गुजरात में पाटीदार किसानों ने अंग्रेजों द्वारा थोप दिए गए भारी खिलाफ अहिंसक अभियान चलाया। तटीय आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के भीतरी भागों में शराब की दुकानों की घेरेबंदी की गई। आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में आदिवासी और गरीब किसानों ने बहुत सारे “वन सत्याग्रह“ किए। इन सत्याग्रहों में कई बार वे चरायी शुल्क अदा किए बिना भी अपने जानवरों को जंगल छोड़ देते थे। उनका विरोध इसलिए था क्योंकि औपनिवेशिक सरकार ने वन संसाधनों पर उनके अधिकारों को बहुत सीमित कर दिया था। उन्हें यकीन था कि गांधीजी उन पर लगे कर कम करा देंगे और वन कानूनों को खत्म करा देंगे बहुत सारे वन गाँवों में किसानों ने स्वराज का ऐलान कर दिया क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि गांधी राज जल्दी ही स्थापित होने वाला है। सिंध (मौजूदा पाकिस्तान) में मुस्लिम व्यापारी और किसान ख़िलाफ़त के आह्वान पर बहुत उत्साहित थे। बंगाल में भी खिलाफत असहयोग के गठबंधन ने जबरदस्त साम्प्रदायिक एकता को जन्म दिया और राष्ट्रीय आंदोलन को नई ताकत प्रदान की। पंजाब में सिखों के अकाली आंदोलन ने अंग्रेजों की सहायता से गुरुद्वारों में जमे बैठे भ्रष्ट महंतों को हटाने के लिए आंदोलन चलाया। यह आंदोलन असहयोग आंदोलन से काफी घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ दिखाई देता था। असम में “ गांधी महाराज की जय “ के नारे लगाते हुए चाय बागान मजदूरों ने अपनी तनख्वाह में इजाफे की माँग शुरू कर दी उन्होंने अंग्रेजी स्वामित्व वाले बागानों की नौकरी छोड़ दी। उनका कहना था कि गांधीजी भी यही चाहते हैं। उस दौर के बहुत सारे असमिया वैष्णव गीतों में कृष्ण की जगह “ गांधी राज “ का यशगान किया जाने लगा था।
गांधीजी को समझना :- इन उदाहरणों के आधार पर हम देख सकते हैं कि कई जगह के लोग गांधीजी को एक तरह का मसीहा, एक ऐसा व्यक्ति मानने लगे थे जो उन्हें मुसीबतों और गरीबी से छुटकारा दिला सकता है। गांधीजी वर्गीय टकरावों की बजाय वर्गीय एकता के समर्थक थे। परंतु किसानों को लगता था कि गांधीजी जमींदारों के खिलाफ उनके संघर्ष में मदद देंगे। खेतिहर मजदूरों को यकीन था कि गांधीजी उन्हें जमीन दिला देंगे। कई बार आम लोगों ने खुद अपनी उपलब्धियों के लिए भी गांधीजी को श्रेय दिया। उदाहरण के लिए , एक शक्तिशाली आंदोलन के बाद संयुक्त प्राप्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) स्थित प्रतापगढ़ के किसानों ने पट्टेदारों की गैर कानूनी बेदखली को रुकवाने में सफलता पा ली थी परंतु उन्हें लगता था कि यह सफलता उन्हें गांधीजी की वजह से मिली है। कई बार गांधीजी का नाम लेकर आदिवासियों और किसानों ने ऐसी कार्रवाइयाँ भी की जो गांधीवादी आदर्शों के अनुरूप नहीं थीं।
8: गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर: 1930 में गांधीजी ने ऐलान किया कि वह नमक कानून तोड़ने के लिए यात्रा निकालेंगे। उस समय नमक बनाने और बेचने का एकाधिकार सरकार के पास था। महात्मा गांधी का कहना था कि नमक ऐसी वस्तु है जिसे गरीब और अमीर हर कोई एक जैसा इस्तेमाल करता है। इसलिए नमक जैसी जरूरी चीज पर टैक्स लगाना गलत है। इसलिए गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला लिया।
अथवा
1930 में गांधीजी ने ऐलान किया कि वह नमक कानून तोड़ने के लिए यात्रा निकालेंगे। उस समय नमक के उत्पादन और बिक्री पर सरकार का एकाधिकार होता था। महात्मा गांधी और अन्य राष्ट्रवादियों का कहना था कि नमक पर टैक्स वसूलना पाप है क्योंकि यह हमारे भोजन का एक बुनियादी हिस्सा होता है। नमक सत्याग्रह ने स्वतंत्रता की व्यापक चाह को लोगों की एक खास शिकायत से जोड़ दिया था और इस तरह अमीरों और गरीबों के बीच मतभेद पैदा नहीं होने दिया। गांधीजी और उनके अनुयायी साबरमती से 240 किलोमीटर दूर स्थित दांडी तट पैदल चलकर गए और वहाँ उन्होंने तट पर बिखरा नमक इकट्ठा करते हुए नमक कानून का सार्वजनिक रूप से उल्लंघन किया। उन्होंने पानी उबालकर भी नमक बनाया। इस आंदोलन में किसानों, आदिवासियों और महिलाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। नमक के मुद्दे पर एक व्यावसायिक संध ने पर्चा प्रकाशित किया। इस तरह से गांधीजी ने नमक कानून को तोड़ने का फैसला लिया।
9: 1937-47 को उन घटनाओं पर चर्चा करें जिनके फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ?
उत्तर: 1937 में जब प्रादेशिक परिषदों के चुनाव परिणाम आए तो मुस्लिम लीग को पूरी तरह लगने लगा था कि मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। 1937 में जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो इससे लीग का गुस्सा और बढ़ गया।
- 1940 में मुस्लिम लीग ने देश के उत्तर पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए स्वायत्त प्रदेश की मांग रखी।
- 1946 के मार्च महीने में तीन सदस्यों वाली कैबिनेट मिशन को दिल्ली भेजा गया ताकि आजाद भारत की रूपरेखा तैयार की जा सके। उस मिशन ने एक ढ़ीले ढ़ाले संघ का सुझाव दिया, जिसमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को कुछ स्वायत्तता मिले। लेकिन उस सुझाव के कई बिंदुओं पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सहमति नहीं बनी।
- उसके बाद मुस्लिम लीग ने अपना आंदोलन तेज कर दिया। आखिरकार, 1947 में देश का विभाजन हुआ और दो नये राष्ट्रों का जन्म हुआ।
अथवा
पाकिस्तान का जन्म-
- 1937 में मुसलिम लीग संयुक्त प्रांत में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी, परंतु कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, जिससे दोनों के बीच मतभेद गहरे हो गए।
- 1940 में मुसलिम लीग ने देश के पश्चिमोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए स्वतंत्र राज्यों की माँग का एक प्रस्ताव पारित किया।
- 1946 के प्रांतीय चुनावी लीग को मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर अत्यधिक सफलता मिली। इससे लीग ‘पाकिस्तान’ की माँग पर कायम रही।
- मार्च 1946 कैबिनेट मिशन की विफलता के बाद लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग मनवाने के लिए 16 अप्रैल, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाई दिवस’ मनाने का आह्वान किया गया।
- इसी दिन कलकत्ता में दंगे भड़क उठे और मार्च, 1947 तक हिंसा उत्तरी भारत के विभिन्न भागों में फैल गई और इसके बाद विभाजन का परिणाम सामने आया एक नए देश पाकिस्तान का जन्म हुआ।
10: पता लगाएं कि आपके शहर जिले इलाके या राज्य में राष्ट्रीय आंदोलन किस तरह आयोजित किया गया। किन लोगों ने उसमें हिस्सा लिया और किन लोगों ने उसका नेतृत्व किया ? आपके इलाके में आंदोलन को कौन सी सफलताएँ मिली ?
उत्तर: राष्ट्रीय आंदोलन, भारत की आज़ादी के लिए सबसे लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ ही हुई। हर बार की तरह लोग इसे हर्षोल्लास से मनाते है। सारे सहभागियों को याद करते है। उनसे जुड़े गीत गाते है।
आपके इलाके में आंदोलन को कौन सी सफलताएँ मिली ? (छात्र इसका उत्तर खुद लिखें)
11: राष्ट्रीय आंदोलन के किन्हीं दो सहभागियों या नेताओं के जीवन और कृतित्व के बारे में और पत्ता लगाएँ तथा उनके बारे में एक संक्षिप्त निबंध लिखें। आप किसी ऐसे व्यक्ति को भी चुन सकते हैं जिसका इस अध्याय में जिक्र नहीं आया है।
उत्तर: वीर कुंवर सिंह- (1777-1858) बिहार राज्य में आरा के निकट जगदीशपुर के एक जमींदार थे। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 80 वर्ष की आयु में उन्होंने दानापुर में संग्राम की कमान सँभाली और दो दिन बाद आरा पर कब्जा कर दिया। 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर के निकट लड़े गए अपने अंतिम युद्ध में उन्होंने कैप्टन लि ग्रैंड की सेना को हराया था। 26 अप्रैल, 1958 को अपने गाँव में उनकी मृत्यु हो गयी।
सरोजिनी नायडू- भारत कोकिला सरोजिनी नायडू (13 फरवरी, 1879-2 मार्च, 1949) एक विशिष्ट कवयित्री और अपने समय की महान वक्ताओं में से थी। 1898 में उनका विवाह गोविन्द राजुलु नायडू से हुआ जो पेशे से डॉक्टर थे।
उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्षता की। नमक सत्याग्रह एवं उसके बाद के अन्य संघर्षों में उनकी अग्रणी भूमिका रही। वह कई वर्षों तक राष्ट्रीय महिला सम्मेलन की अध्यक्षा रहीं तथा इससे जुड़े स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देती रहीं। वह 1947 में यूनाइटेड प्रॉविंस (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की गवर्नर नियुक्त होने वाली प्रथम महिला थीं।