कक्षा 9 इतिहास पाठ 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद एनसीईआरटी अभ्यास के प्रश्न उत्तर सरल अक्षरों में दिया गया है। इन एनसीईआरटी समाधान के माध्यम से छात्र परीक्षा की तैयारी बेहतर तरीके से कर सकते हैं, जिससे छात्र परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों के लिए कक्षा 9 इतिहास के प्रश्न उत्तर एनसीईआरटी किताब के अनुसार बनाये गए है। हिंदी मीडियम के छात्रों की मदद करने के लिए, हमने एनसीईआरटी समाधान से संबंधित सभी सामग्रियों को नए सिलेबस के अनुसार संशोधित किया है। विद्यार्थी ncert solutions for class 9 social science history chapter 4 hindi medium को यहाँ से निशुल्क में प्राप्त कर सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 इतिहास अध्याय 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
प्रश्न 1. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया :
(क) झूम खेती करने वालों को
(ख) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को
(ग) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को
(घ) बागान मालिकों को
(ङ) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को
उत्तर:
(क) झूम खेती करने वालों को: वन प्रबंधन की नीति में बदलाव का झूम खेती करने वालों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। खेती की इस पद्धति को प्रतिबंधित किए जाने के कारण उन्हें दूसरा व्यवसाय अपनाना पड़ा।
(ख) घुमंतू और चरवाहों का: नई नीति के तहत इन समुदाय समुदायों को सुरक्षित वनों में अपनी गतिविधियां चलाने से रोक दिया गया फलता उनकी रोजी-रोटी प्रभावित हुई। उत्पादों के व्यापार को रोके जाने से इन समुदायों के लिए आय के स्त्रोत समाप्त हो गए तथा इनका जीवन-यापन कठिन हो गया।
(ग) लकड़ी और व्यापार: उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को वन प्रबंधन की नीति के तहत इन कंपनियों को लकड़ी और वन उत्पादों का व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया गया। इस समूह के लोगों को इस नीति का सर्वाधिकार लाभ पहुंचा, फलत उन्होंने अपने और सरकार के लिए विशाल मात्रा में वनों के दोहन तथा आदिवासियों के शोषण द्वारा धन जुटाया।
(घ) बागान मालिकों को बागान मालिकों को अपने व्यवसाय से बहुत अधिक लाभ हुआ अवन अब नई करण के उपरांत चाय कॉफी रबड़ आदि के नए-नए बागान विकसित किए गए इन बागानों में जीवन यापन से हीन आदिवासियों से मुफ्त काम करवाया जाता था क्योंकि इन उत्पादों का निर्यात होता था अतः सरकार और फर्म दोनों को बहुत अधिक लाभ हुआ।
(ङ) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेजी अंग्रेजी अफसरों को हालांकि जंगलों में शिकार करना प्रतिबंध कर दिया गया था परंतु इसमें भेदभाव बरता गया राजा महाराजा तथा अंग्रेज अफसर इन नियमों के बावजूद शिकार करते थे उसके साथ सरकार की मौन सहमति थी क्योंकि बड़े जंगली जानवरों को वे आदि असभ्य एवं बर्बर समुदाय का सूचक मानते थे अतः भारत को सभ्य बनाने के नाम पर इन जानवरों का शिकार चलता रहा।
प्रश्न 2. बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर: बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में समानताएं:
(i) जावा में डचों ने वनों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया जबकि बस्तर में अंग्रेजों ने।
(ii)बस्तर एवं जावा दोनों स्थानों में ही वन नियमों को कठोरता से लागू किया गया।
(iii) बस्तर और जावा दोनों में ही नियमों के अंतर्गत वनों का वर्गीकरण किया गया एवं सुरक्षित वनों में लकड़ी काटने तथा वन उत्पादन एकत्रित करने पर पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
(iv) बस्तर और जावा दोनों ही क्षेत्रों में स्थानांतरित कृषि पर प्रतिबंध लगाया गया।
प्रश्न 3. सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ
(क) रेलवे
(ख) जहाज़ निर्माण
(ग) कृषि विस्तार
(घ) व्यावसायिक खेती
(ङ) चाय-कॉफी के बगान
(च) आदिवासी और किसान
उत्तर: (क) रेलवे- रेलवे के विस्तार का वन क्षेत्रों की कमी में महत्वपूर्ण योगदान रहा। रेल की पटरियाँ बिछाने के लिए आवश्यक स्लीपरों के लिए भारी संख्या में पेड़ो को काटा गया। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 1 मील लंबी पटरी बिछाने के लिए लगभग 500 पेड़ों की आवश्यकता होती थी। रेलवे सैनिकों और वाणिज्यक वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह तक लाने-ले जाने में सहायक था। इसलिए इस कार्य को बहुत तेजी से किया गया फलतः वनों का तेजी से ह्यास हुआ।
(ख) जहाज निर्माण- जहाज निर्माण उद्योग वन क्षेत्र में कमी के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारण रहा जो कि यूरोप में ओक वन लगभग ख़त्म हो चुके थे ऐसी स्थिति में उनकी नज़र भारतीय वनों की कठोर और टिकाऊ लकड़ी पर पड़ी उन्होंने इसकी अंधाधुध कटाई शुरु कर दी जिससे वनों का तेजी से हास हुआ।
(ग) कृषि विस्तार- इस दौरान न केवल यूरोपीय बल्कि भारतीय आबादी भी तेजी से बढ़ रही थी। जिसके कारण कृषि उत्पादों की मांग में भी तेजी से वृद्धि हुई कृषि भूमि सिमित ही थी। किन्तु इतनी बड़ी आबादी की मांग पूरी नहीं हो रही थी। ऐसी स्थिति में औपनिवेशिक सरकार ने कृषि भूमि में वृद्धि करने की सोची। किंतु फैसला अविवेकपूर्ण ढंग से किया गया जिसके कारण वनो का ह्यास हुआ।
(घ) व्यवसायिक खेती- व्यवसायिक खेती भी वनों के हास का प्रमुख कारण है। इस तरह की खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता थी। उपलब्ध भूमि पर पारंपरिक तरीके से वर्षा से खेती की जा रही थी जिसके कारण वह खास उपजाऊ नहीं रह गई थी। परिणास्वरूप उपजाऊ भूमि के लिए वनों को साफ किया जाने लगा लगा और वनों का ह्यास हुआ।
(ङ) चाय-कॉफी के बागान- वनों की कीमत पर चाय एवं कॉफी के बागानों के विकास को प्रोत्साहित किया गया। इसके लिए यूरोपियन लोगों को परमिट दिया गया तथा हर संभव सहायता दी गई। वनवसियों का कम-से-कम मजदूरी पर पेड़ काटकर बागान के लिए ज़मीन तैयार करने के साथ-साथ बागान के अन्य विकास संबंधी कार्यों में लगाया गया। इस तरह वर्ग तथा वनवासी दोनों को ही नुकसान पहुंचाया गया।
(च) आदिवासी और किसान समूह- आदिवासी और किसान समूह ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया क्योंकि यह सरकार के हाथ अपनी वन संपदा खो चुके थे। किंतु अपनी जमीन वापस मिलते ही वह वापस अपने परंपरागत कार्यों पर लौट आएl यहां तक की स्वतंत्रता के उपरांत आज भी पर वन में ही रहना पसंद करते हैं।
प्रश्न 4. युद्ध से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर: युद्धों से वनों पर कई कारणों से प्रभाव पड़ता है:
- भारत में वन विभाग ने ब्रिटेन की लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंधाधुंध वन काटे। इस अंधाधुंध विनाश एवं राष्ट्रीय लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों की कटाई वनों को प्रभावित करती है क्योंकि वे बहुत तेजी से खत्म होते हैं जबकि ये दोबारा पैदा होने में बहुत समय लेते हैं।
- जावा में जापानियों के कब्जा करने से पहले, डचों ने ‘भस्म कर भागो’ नीति अपनाई जिसके तहत आरा मशीनों और सागौन के विशाल लट्ठों के ढेर जला दिए गए जिससे वे जापानियों के हाथ न लगें। इसके बाद जापानियों ने वन्य-ग्रामवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य करके वनों का अपने युद्ध कारखानों के लिए निर्मता से दोहन किया। बहुत से गाँव वालों ने इस अवसर का लाभ उठा कर जंगल में अपनी खेती का विस्तार किया। युद्ध के बाद इंडोनेशियाई वन सेवा के लिए इन जमीनों को वापस हासिल कर पाना कठिन था।