कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान नागरिक शास्त्र पाठ 6 हाशियाकरण से निपटना एनसीईआरटी अभ्यास के प्रश्न उत्तर सरल अक्षरों में दिया गया है। इन एनसीईआरटी समाधान के माध्यम से छात्र परीक्षा की तैयारी बेहतर तरीके से कर सकते हैं। जिससे छात्र कक्षा 8 नागरिक शास्त्र परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों के लिए कक्षा 8 नागरिक शास्त्र के प्रश्न उत्तर एनसीईआरटी किताब के अनुसार बनाये गए है। हिंदी मीडियम के छात्रों की मदद करने के लिए, हमने एनसीईआरटी समाधान से संबंधित सभी सामग्रियों को नए सिलेबस के अनुसार संशोधित किया है। विद्यार्थी ncert solutions for class 8 social science civics chapter 6 hindi medium को यहाँ से निशुल्क में प्राप्त कर सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 नागरिक शास्त्र अध्याय 6 हाशियाकरण से निपटना
अभ्यास
प्रश्न 1: दो ऐसे मौलिक अधिकार बताइए जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए इस्तेमाल कर सकते है। इस सवाल का जवाब देने के लिए पृष्ठ 14 पर दिए गए मौलिक अधिकारों को दोबारा पढ़िए।
उत्तर: ऐसे दो मौलिक अधिकार जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए प्रयोग कर सकते हैं-
- समानता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
अथवा
मौलिक अधिकार का खंड भारतीय संविधान की आत्मा कहलाता है। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान रूप से छः प्रकार के अधिकार प्रदान करता है। लेकिन दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए समानता तथा शोषण के विरुद्ध अधिकार का इस्तेमाल कर सकते है :- समानता का अधिकार- समानता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है। अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। कानून के सामने सभी बराबर हैं और कोई कानून से ऊपर नहीं है। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। सरकारी पदों पर नियुक्तियां करते समय जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सभी नागरिकों को सभी सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने का समान अधिकार है। छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। सेना शिक्षा संबंधी उपाधियों को छोड़ कर अन्य सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है। शोषण के विरुद्ध अधिकार – संविधान की धारा 23 और 24 के अनुसार नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिए गए हैं। इस अधिकार के अनुसार व्यक्तियों को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति से बेगार नहीं ली जा सकती। किसी भी व्यक्ति की आर्थिक दशा से अनुचित लाभ नहीं उठाया जा सकता और कोई काम उसकी इच्छा के विरुद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को ऐसे कारखाने में नौकर नहीं रखा जा सकता, जहां उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने की संभावना हो।
प्रश्न 2: रत्नम की कहानी और 1989 के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों को दोबारा पढ़िए। अब एक कारण बताइए कि रत्नम ने इसी कानून के तहत शिकायत क्यों दर्ज कराई।
उत्तर: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989-
- रत्नम को पुजारियों के पैरों के धोवन के पानी से नहाने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
- इस अधिनियम के अनुसार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कृत्य (कार्य) करने के लिए मजबूर करना जो मानवीय प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है अपराध माना जाता है।
- रत्नम ने इसीलिए इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज कराई।
अथवा
समाज में जो दबे हुए व्यक्ति होते है या पिछड़े और कमज़ोर लोग है हमेशा से ही उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उन्हें सदा तुच्छ भावना से देखा जाता है। उनको अपमानित किया जाता है। ताकि लोगों के साथ किसी भी अवस्था में बुरा व्यवहार ना हो इसीलिए 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू किया गया था। इसका उद्देश्य यही था जिनके साथ बुरा व्यवहार हो, जिन्हें प्रताड़ित किया जाए उनके विरुद्ध कार्यवाही होगी। उन्हें सज़ा दी जाएगी। रत्नम भी इसी जाति से सम्बन्धित रखता था। उसने पुजारियों के पैर धोने तथा उसी पानी से नहाने के लिए मना कर दिया था। इससे ऊँची जाति के लोग क्रोधित हो गए थे। ऊँची जाति के लोगों ने रत्नम और उसके परिवार का बहिष्कार करने का आदेश दिया। उनके घर आग भी लगाई लेकिन वे बच गए। इसके बाद उन्होंने 1989 के एक्ट के अंतर्गत पुलिस स्टेशन में केस दर्ज करवाया। उन्हें समर्थन भी मिला और अब इस रस्म को समाप्त कर दिया गया है।
प्रश्न 3: सी.के. जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासी अपने परंपरागत संसाधनों के छीने जाने के ख़िलाफ़ 1989 के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं ? इस कानून के प्रावधानों में ऐसा क्या खास है जो उनकी मान्यता को पुष्ट करता है ?
उत्तर: इस अधिनियम में यह कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी दलित की जमीन को हड़प लेता है या उसपर खेती करता है तो उसे सजा मिलेगी। इसलिए सी के जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को ऐसा लगता है कि आदिवासी भी अपने परंपरागत संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ 1989 के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं।
अथवा
1989 का अधिनियम एक और वजह से महत्वपूर्ण है। आदिवासी कार्यकर्ता अपनी परंपरागत जमीन पर अपने कब्जे की बहाली के लिए इस कानून का सहारा लेते हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों ने आदिवासियों की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया है। उन्हें इसी कानून के तहत सजा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कानून भी जीने जनजातीय समुदायों को केवल वही लाभ देता है जिनका संविधान में आश्वासन दिया गया था। उनका कहना है कि संवैधानिक रूप से आदिवासियों की जमीन को किसी गैर–आदिवासी व्यक्ति को नहीं बेचा जा सकता। जहाँ ऐसा हुआ है वहाँ संविधान की गरिमा बनाए रखने के लिए उन्हें उनकी ज़मीन वापस मिलनी चाहिए। आदिवासी कार्यकर्ता सी.के. जानू का आरोप है कि आदिवासियों के संवैधानिक कानूनों का उल्लंघन करने वालों में विभिन्न प्रदेशों की सरकारें भी पीछे नहीं हैं।
प्रश्न 4: इस इकाई में दी गई कविताएँ और गीत इस बात का उदाहरण हैं कि विभिन्न व्यक्ति और समुदाय अपनी सोच, गुस्से और अपने दुखों को किस – किस तरह से अभिव्यक्त करते हैं। अपनी कक्षा में ये दो कार्य कीजिए:
(क) एक ऐसी कविता खोजिए जिसमें किसी सामाजिक मुद्दे की चर्चा की गई है। उसे अपने सहपाठियों के सामने पेश कीजिए। दो या अधिक कविताएँ लेकर छोटे – छोटे समूहों में बँट जाइए और उन कविताओं पर चर्चा कीजिए। देखें कि कवि ने क्या कहने का प्रयास किया है।
उत्तर:
ना जाने यह कैसा जमाना आ रहा है
बाप बेटे का रिश्ता पहले जैसा ना रहा है
जिसने गोद में पाला उसका मान ना रहा है
बेटा उनको बोझ समझ रहा है यहां रिश्ता ना कोई रहा है
बस पैसे से ही रिश्ता रहा है
यहां रिश्ता ना कोई रहा है
बस पैसे से ही रिश्ता रहा है
ना जाने यह कैसा जमाना आ रहा है
बाप बेटे का रिश्ता पहले जैसा ना रहा है
भाई से प्यारी घरवाली हो गई है
भाई भाई का दुश्मन हो गया है
ना कोई इज्जत है ना शर्म हया है
यहां तो रिश्तों से भी बढ़कर अपनी अदा है
प्यारी सी बहनिया बोझ हो गई है
बुढ़ापे में मां बाप बोझ हो गए है
ना जाने यह कैसा जमाना आ रहा है
बाप बेटे का रिश्ता पहले जैसा ना रहा है
कवि कहना चाहते है कि हमें समाज के प्रति अपने आप में बदलाव लाना भी ज़रूरी है। आज हम देखें तो हमारे समाज में हमारे देश में कई तरह के बदलाव आ रहे हैं। पहले के जमाने में जहां लोग अपने मां बाप, भाई बहन, गुरु का मान सम्मान करते थे लेकिन आजकल के जमाने कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनको इन रिश्तों की बिल्कुल भी परवाह नहीं रही है वह इनको नहीं मानते और सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। समाज के मुद्दे आज हमको देखने को मिलते हैं हमने इस नए जमाने में भले ही बहुत सारे बदलाव महसूस किए हैं लेकिन हमें चाहिए कि हम इस तरह के बदलाव ना लाएं क्योंकि हमारे जीवन में हमारे रिश्ते नातों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।
(ख) अपने इलाके में किसी एक हाशियाई समुदाय का पता लगाइए। मान लीजिए कि आप उस समुदाय के सदस्य हैं। अब इस समुदाय के सदस्य की हैसियत से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कोई कविता या गीत लिखिए या पोस्टर आदि बनाइए।
उत्तर: हाशियाई समाज एक व्यापक अवधारणा के रूप में हमारे सामने मौजूद है। हमारे शहर में हाशिए के समाज में दलित आदिवासी, स्त्रियाँ, किसान, मजदूर आदि की गणना की जाती है। जिनकी आबादी कुल आबादी की तीन चौथाई होती है। “संख्या के लिहाज से ज्यादा होते हुए भी उनका विकास नहीं हो पा रहा है। जबकि दूसरी तरफ संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी इस देश को चला रहे हैं। हमने उनकी पीड़ा को सहन करते हुए महसूस किया है जैसे :-
हरिजन बस्ती में, मंदिर के पास एक कबीठ के धड़ पर, मटमैले छप्परों पर, कुहासों के भूतों पर लटके चूनर के चिथरे, अंगिया व घाघरे फटी हुई चाय अटक गयी जिनमें एक व्यभिचारी की टकटकी गंजे सिर, टेढ़े मुँह चाँद की ही कंजी आँख!
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1: आपकी राय में दलितों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए आरक्षण इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है। इसका एक कारण बताइए।
उत्तर: दलितों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए आरक्षण इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है। यह महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ बेहद विवादास्पद भी है। आरक्षण द्वारा ही समाज में से सामाजिक असमानता को समाप्त किया जा सकता है। इससे जहां कुछ तबकों को जिन्हें सदियों से पढ़ने -लिखने और नई निपुणताएं हासिल करने के अवसरों से वंचित रखा गया है उन्हें उचित शिक्षा और नौकरी प्राप्त होती है। आरक्षण के कारण इन समुदायों में आत्म -सम्मान की भावना पैदा होती है जिससे वे आत्म- निर्भर बनते है।
प्रश्न 2: आपको ऐसा क्यों लगता है कि दलित परिवार शक्तिशाली जातियों के गुस्से की आशंका से डरे हुए थे ?
उत्तर: दलित परिवार शक्तिशाली जातियों के गुस्से की आशंका से डरे हुए थे क्योंकि बहुत से दलित परिवार इन शक्तिशाली जातियों के खेतों में काम करते थे। उन्हें यह डर लगा रहता कि कभी उनके गुस्से से काम न छिन जाए। उन्हें लगता था कि अगर वे अपना मुंह खोलेंगे तो उनकी हालत भी रत्नम जैसी हो जाएगी। शक्तिशाली जातियों ने यह भी घोषणा कर दी थी कि यदि दलित नहीं झुके तो उन्हें स्थानीय देवता का अभिशाप लगेगा।
प्रश्न 3: क्या आप 1989 के कानून के दो प्रावधानों का उल्लेख कर सकते हैं ?
उत्तर: 1989 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम पारित किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे लोगों को सज़ा दिलाना है जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसी व्यक्ति को कोई अखाद्य या गंदी वस्तु खाने या पीने के लिए विवश करता है। उस समय सरकार पर इस बात के लिए भारी दबाव पड़ रहा था कि वह दलितों और आदिवासियों के साथ रोजमर्रा होने वाले दुर्व्यवहार और अपमान पर रोक लगाने के लिए ठोस कार्यवाही करें। इस कानून में अपराधों की लम्बी सूची है। इसमें कई स्तर के अपराधों के बीच अंतर किया गया है।
प्रश्न 4: सिर पर मैला उठाने का आप क्या अर्थ समझते हैं ?
उत्तर: समाज में बहुत से लोग झाड़ू – टिन और टोकरियों के सहारे पशुओं तथा मनुष्यों के मल – मूत्रों को साफ करते है। वे बिना पानी वाले शौचालयों से गंदगी उठाकर दूर के स्थानों पर फेंककर आते है। सिर पर मैला उठाने वाले दर पीढ़ी यही काम करते हैं। यह काम आमतौर पर दलित औरतों और लड़कियों के हिस्से में आता है। ये बेहद अमानवीय स्थितियों में काम करते हैं। इस काम के कारण उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा बना रहता है। वे लगातार ऐसे संक्रमण के खतरे में रहते हैं जिससे उनकी आँखों, त्वचा, श्वसन तंत्र पाचन तंत्र पर असर पड़ सकता है। इस काम के लिए उन्हें बहुत मामूली वेतन मिलता है। नगरपालिकाओं में काम करने वालों को रोज़ाना 40 रुपए मिलते हैं जबकि निजी घरों में काम करने वालों को इससे कम पैसा मिलता है।
प्रश्न 5: पृष्ठ 14 पर दिए मालिक अधिकारों की सूची को दोबारा पढ़ें और ऐसे दो अधिकारों का उल्लेख करें जिनका इस प्रथा के जरिए उल्लंघन हो रहा है ?
उत्तर: पृष्ठ 14 पर दिए गए अधिकारों को देखते हुए प्रतीत होता है कि इस प्रथा से समानता के अधिकार, स्वतंत्रता तथा शोषण के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
प्रश्न 6: सफाई कर्मचारी आंदोलन ने 2003 में जनहित याचिका क्यों दायर की ? अपनी याचिका में उन्होंने किस बात पर आपत्ति व्यक्त की ?
उत्तर: सरकार ने एम्प्लॉयमेंट ऑफ मैन्युअल स्केवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिन्स एक्ट पारित किया था। यह एक्ट सिर पर मैला रखने वालों को काम पर रखने और सूखे शौचालयों के निर्माण पर पाबंदी लगाना था। 2003 में सफाई कर्मचारी आंदोलन तथा 13 अन्य संगठनों व व्यक्तियों जिनमें 7 मैला ढोने वाले थे सब ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। सिर पर मैला ढोने वालों का कहना था कि मैला ढोने की प्रथा आज भी रेलवे जैसे संस्थानों में चल रही है। याचिकाकर्ताओं ने अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने का आग्रह किया।
प्रश्न 7: 2005 में इस याचिका पर विचार करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने क्या किया ?
उत्तर: न्यायालय ने इस याचिका के जवाब में निष्कर्ष दिया कि 1993 में पारित किए गए कानून के बाद देश भर में सिर पर मैला ढोने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार के प्रत्येक विभाग / मंत्रालय को आदेश दिया कि वे 6 माह के भीतर इस बात की सच्चाई का पता लगाएं। अगर सिर पर मैला ढोने की प्रथा अभी भी प्रचलन में पाई जाती है तो सम्बन्धित सरकारी विभागों को ऐसे लोगों की मुक्ति और पुनर्वास के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करना चाहिए।