कक्षा 8 नागरिक शास्त्र अध्याय 4 न्यायपालिका एनसीईआरटी के प्रश्न उत्तर

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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 नागरिक शास्त्र अध्याय 4 न्यायपालिका

अभ्यास

प्रश्न 1: आप पढ़ चुके हैं कि ‘कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना’ न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरूरी है ?

उत्तर: अगर न्यायपालिका पर राजनेताओं की पकड़ हो जाएगी तो कोई भी जज स्वतंत्र फैसले नहीं ले पाएगा। ऐसा होने से जज को हमेशा राजेंताओं के पक्ष में निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। ऐसे में न्यायपालिका के लिए कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना लगभग असंभव हो जाएगा। इसलिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना जरूरी है।

अथवा

न्यायपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह कानून को क़ायम रखता है और मौलिक अधिकारों को लागू करता है। न्यायपालिका को संविधान का रक्षक कहा जाता है। लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता का बहुत महत्व होता है, न्यायपालिकाओं की स्वतंत्रता अदालतों को भारी ताकत देती है। इसके आधार पर वे विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती हैं। न्यायपालिका देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों एक रक्षा में भी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को लगता है कि अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता से अभिप्राय यह है कि न्यायपालिका पर किसी भी प्रकार की कोई रोक टोक न हो वह संपूर्ण रूप से अपना हर कार्य कर सके। संविधान की व्याख्या का अधिकार मुख्य रूप से न्यायपालिका के पास ही होता है। इस नाते यदि न्यायपालिका को ऐसा लगता है कि संसद द्वारा पारित किया गया कोई कानून संविधान के आधारभूत ढाँचे का उल्लंघन करता है तो वह उस कानून को रद्द कर सकती है। अगर न्यायपालिका स्वतंत्र है तभी वह निष्पक्ष निर्णय ले सकती है और नागरिकों को निष्पक्ष न्याय मिल सकता है।

प्रश्न 2: अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़ें। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक का अधिकार न्याययिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है ?

उत्तर: संवैधानिक उपचारों का अधिकार एक विशेष प्रकार का अधिकार है। इस अधिकार के बिना मूल अधिकारों का कोई महत्त्व नहीं है। यह अधिकार नागरिकों को इस बात के लिए अधिकृत करता है कि यदि राज्य किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करता है या उनका हनन करता है, तो वह नागरिक न्यायालय की शरण में जा सकता है। नागरिकों द्वारा मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए न्यायालय की शरण में आने पर न्यायालय बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार – पृच्छा तथा उत्प्रेषण आदि रिट जारी कर सकता है। इस प्रकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार हमारे मूल अधिकारों का संरक्षक होने के नाते एक अति विशिष्ट अधिकार है।

प्रश्न 3: नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था ? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाब के साथ मिलकर देखों।

उत्तर: 
निचली अदालत :-  निचली अदालत ने सुधा के पति, सास और जेठ को दोषी माना और मौत की सज़ा सुनाई।

उच्च न्यायालय :- 1983 में तीनों आरोपियों ने निचली अदालत के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की। वकीलों के तर्क सुनकर उच्च न्यायालय ने फैसला लिया कि सुधा की मौत एक दुर्घटना थी, वह स्टॉव से आग लगने के कारण जली थी। इसलिए उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया।

सर्वोच्च न्यायालय :- इसके बाद उच्च न्यायालय के खिलाफ ‘इंडियन फेडरेशन ऑफ वीमेन लॉयर्स ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। 1985 में यह सुनवाई शुरु हुई। वकीलों के तर्क सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने लक्ष्मण तथा उसकी मां को दोषी पाया और सुभाष चंद्र जो कि सुधा के जेठ था सबूत न होने के कारण उसे बरी कर दिया। बाकि दोनों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई।

प्रश्न 4: सुधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए । जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत हैं उनको ठीक कीजिए।

(क) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।

उत्तर:  सही।

(ख) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ़ उच्च न्यायालय में चले गए।

उत्तर: गलत, सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अंतिम होता है, इसके खिलाफ कोई किसी न्यायालय में नहीं जा सकता।

(ग) अगर आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं।

उत्तर:  गलत, नहीं सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उच्च न्यायालय या निचली अदालत में नहीं जा सकते।

प्रश्न 5: आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी ?

उत्तर: कानूनी प्रक्रिया लंबी और महंगी होती है। इसलिए अधिकतर लोग (खासकर गरीब तबके के लोग) अदालतों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं। ऐसे लोगों को अक्सर न्याय से वंचित रहना पड़ता है। जनहित याचिका की व्यवस्था ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। इसके अनुसार, कोई भी व्यक्ति आम आदमी की समस्या को लेकर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर सकता है ताकि लोगों को न्याय मिल सके। इसलिए मुझे लगता है कि जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी।

प्रश्न 6: ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िए। इस फ़ैसले में कहा है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जज़ो का क्या मतलब था ?

उत्तर: ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के  कहा गया हैं कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है।

इस बयान से जजों का निम्नलिखित मतलब था :  
ओल्गा टेलिस तथा मुंबई मुंसिपल मुकद्दमे में आजीविका का आधार जीवन के अधिकार के भाग के रूप में स्थापित हुआ । जीवन के अधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 21 में किया गया है ।‌अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।  परंतु यह जीवन के अधिकार का एक पक्ष है।  जीवन के अधिकार का दूसरा पक्ष आजीविका कमाने के अधिकार से संबंधित है , क्योंकि कोई भी मनुष्य आजीविका के साधनों के बिना जीवित नहीं रह सकता ।‌ इस प्रकार आजीविका कमाने का जीवन के अधिकार का भाग है । ओल्गा टेलिस तथा मुंबई मुंसिपल मुकद्दमे में यही निष्कर्ष निकाला गया। यह निर्णय झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों के आजीविका कमाने के अधिकार की रक्षा करता है।

अथवा

आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा-

  1.  कानून के द्वारा तय की गयी प्रक्रिया जैसे मृत्युदंड देने और उसे लागू करने के अलावा और किसी तरीके से किसी की जान नहीं ली जा सकती।।
  2. जीवन के अधिकार का इतना ही महत्त्वपूर्ण पहलू आजीविका का अधिकार भी है, कोई भी व्यक्ति आजीविका के बिना जीवित नहीं रह सकता।
  3. इस मुकदमे में याचिकाकर्ता झुग्गियों और पटरियों में रहते हैं और उन्हें वहाँ से हटाने की माँग की जा रही है।
  4. अगर उन्हें झुग्गियों या पटरी से हटा दिया जाए तो उनका रोजगार भी खत्म हो जाएगा और वे अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे। इस प्रकार वे जीवन के अधिकार से भी वंचित हो जाएँगे।

प्रश्न 7: ‘इंसाफ़ में देरी यानी इंसाफ़ का कत्ल ‘ इस विषय पर एक कहानी बनाइए।

उत्तर:  इस विषय पर आप ऐसे व्यक्ति की कहानी बना सकते हैं जिसे झूठे केस में गिरफ्तार कर लिया जाता है। फिर किसी न किसी बहाने उसे 30 वर्षों तक जेल में रखा जाता है। आखिर में 30 वर्षों के बाद अदालत उसे निर्दोष पाती है और बाइज्जत बरी कर देती है। देरी से न्याय मिलने के कारण उस व्यक्ति के जीवन के 30 बहुमूल्य वर्ष बरबाद हो जाते हैं। जेल से बाहर आने के बाद उसे पता चलता है कि उसके परिवार में कोई भी जीवित नहीं बचा है। उसके लिए आगे बची पहाड़ जैसी जिंदगी काटना मुश्किल साबित होता है।

अथवा

श्रीमान शंकर एक सरकारी कर्मचारी थे| सेवानिवृति के पश्चात् वे अपने पुश्तैनी मकान में रहने आए जो उन्होंने अब तक किराये पर दिया हुआ था उन्होंने किराएदारों से मकान खली करने को कहा लेकिन उन्होंने मकान खाली नही किया| किराएदारों ने श्रीमान शंकर को कहा कि यदि वह मकान खली कराना चाहते हैं तो कोर्ट से नोटिस लाएं| श्रीमान शंकर को मज़बूरी में किराये पर रहना पड़ा और उन्होंने किरायएदारों के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया| 5 साल तक केस लड़ने के बाद जिला अदालत ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया और वे मुकदमा जीत गए| किराएदारों ने जिला अदालत के फैसले के प्रति असहमति व्यक्त करते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर कर दी| लगातार तारीखें पड़ने लगीं और न्याय होने में 10 साल और गुजर गए| श्रीमान शंकर सेवानिवृति के बाद 15 साल तक किराए के मकान में रहें, अदालतों के चक्कर लगते रहे| उन्होंने महसूस किया कि न्याय में विलंब एक प्रकार से न्याय का निषेध ही था|

प्रश्न 8: अगले पन्ने पर शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए।

उत्तर: बरी करना :- अगर किसी पर कोई मुकदमा चल रहा हो और वह उस पर लगे आरोपों से वह मुक्त हो जाए , उसे बरी कर देते है।
अपील करना :- किसी न्यायालय के द्वारा सुनाया गया फैसला अगर किसी व्यक्ति को सही ना लगे तो वह उससे उच्च न्यायालय में जाकर उस फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है।
मुआवजा :- किसी प्रकार की क्षति की भरपाई के लिए दिए जाने वाले पैसे को मुआवजा कहते है।
बेदखली :- किसी ज़मीन, घर, संपत्ति पर जब किसी का अधिकार नहीं रहता उसे बेदखली करना कहते है।
उल्लंघन :- बनाए गए नियमों का पालन न करना उल्लंघन कहलाता है।

प्रश्न 9: यह पोस्टर भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।

इस पोस्टर को पढ़ कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए। इस पोस्टर में कहा गया है कि “ भूखे पेट भरे गोदाम ! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा !! “ इस वक्तव्य को पृष्ठ 61 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध से मिला कर देखिए।

उत्तर: हर व्यक्ति को जीवन का अधिकार है। लेकिन जीवन जीने के लिए भोजन आवश्यक होता है। अगर किसी व्यक्ति को खाना ही नहीं मिलेगा तो वह मर भी सकता है। भूखा मरता व्यक्ति कोई भी गलत चीज़ करने के लिए तैयार रहता है। इससे समाज में असामाजिक तत्व पैदा होते है। सरकार जो उन सभी व्यक्तियों के लिए कोई न कोई योजना बनानी चाहिए। उन्हें रोजगार, भत्ता, खाद्य पदार्थ देने चाहिए।

पाठ के बीच में पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: क्या आपको ऐसा लगता है कि इस तरह की न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक भी किसी नेता के खिलाफ मुकदमा जीत सकता है ? अगर नहीं तो क्यों ?

उत्तर: नेताओं का न्यायाधीश पर जो नियंत्रण रहता है उसकी वजह से न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से फ़ैसले नहीं ले पाते। स्वतंत्रता का यह अभाव न्यायाधीश और उसकी न्यायिक व्यवस्था को इस बात के लिए मजबूर कर देगा कि वह हमेशा नेताओं के ही पक्ष में फ़ैसला सुनाए। हम ऐसे बहुत सारे किस्से जानते हैं जब अमीर और ताकतवर लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया है। ऐसे में एक आम नागरिक किसी नेता के खिलाफ मुकदमा जीत नहीं सकता।

प्रश्न 2: दो वजह बताइए कि लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका अनिवार्य क्यों होती है ?

उत्तर: न्यायपालिकाओं की स्वतंत्रता अदालतों को भारी ताकत देती है। इसके आधार पर वे विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती हैं। न्यायपालिका देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की एक रक्षा में भी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को लगता है कि अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है।

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