कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 अनुवांशिकता एवं जैव विकास एनसीईआरटी के प्रश्न उत्तर

कक्षा 10 विज्ञान पाठ 8 अनुवांशिकता एवं जैव विकास एनसीईआरटी अभ्यास के प्रश्न उत्तर सरल भाषा में दिया गया है। इन एनसीईआरटी समाधान के माध्यम से छात्र परीक्षा की तैयारी बेहतर तरीके से कर सकते हैं। जिससे छात्र विज्ञान परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों के लिए कक्षा 10 विज्ञान के प्रश्न उत्तर एनसीईआरटी किताब के अनुसार बनाये गए है। हिंदी मीडियम के छात्रों की मदद करने के लिए हमने एनसीईआरटी समाधान से संबंधित सभी सामग्रियों को नए सिलेबस के अनुसार संशोधित किया है। विद्यार्थी ncert solutions for class 10 science chapter 8 hindi medium को यहाँ से निशुल्क में प्राप्त कर सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 8 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

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प्रश्न 1. यदि एक ‘लक्षण-A’ अलैंगिक प्रजनन वाले समष्टि के 10 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण B’ उसी समष्टि के 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?

उत्तर: लक्षण-B पहले उत्पन्न हुआ होगा क्योंकि यह 60 प्रतिशत है तथा पीढ़ी दर पीढी लक्षण (trail अथवा variations) किसी समष्टि की जनसंख्या संग्रहित होते हैं।

प्रश्न 2. विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज़ का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?

उत्तर: विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज़ के अस्तित्व की संभावना इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि वह स्पीशीज़ स्वयं को वातावरण के अनुसार अनुकूलित करने में सक्षम हो जाता है। उदाहरण के लिए उष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवाणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है। यदि वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) के कारण जल का ताप बढ़ जाता है, तो जीवाणु मर जाते हैं केवल उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले ही जीवित रह पाते हैं।

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प्रश्न 1. मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी हैं?

उत्तर:  जब मेंडल ने मटर के लंबे पौधे और बौने पौधे का संकरण कराया तो उसे प्रथम संतति पीढ़ी F1 में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए थे। इसका अर्थ था कि दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक लक्षण ही दिखाई दिया। उन दोनों का मिश्रित प्रमाण दिखाई नहीं दिया। उसने पैतृक पौधों और F1 पीढ़ी के पौधों को स्वपरागण से उगाया। इस दूसरी पीढ़ी F2 में सभी पौधे लंबे नहीं थे। इस में एक चौथाई पौधे बौने थे। मेंडल ने लंबे पौधों के लक्षण को प्रभावी और बौने पौधों के लक्षण को अप्रभावी कहा।

अथवा

मेंडल ने बौने व लंबे मटर के पौधों का संकरण किया F1 ( प्रथम पीढ़ी ) में नंही पौधों लंबे आकार के थे | इस प्रकार बौनापन F1 पीढ़ी में नंही दिखा | इसके पश्चात् उसने दोनों तरह के पैतृक पौधों तथा  F1 पीढ़ी का स्वपरागण कराया | अब उत्पन्न F2 के सभी पौधे लंडे नहीं थे | इसका निष्कर्ष निकला कि लंबे होने का लक्षण प्रभावी व बौनेपन का लक्षण अप्रभावी हैं |

प्रश्न 2. मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?

उत्तर: मेंडल के प्रयोग में F, पीढी के सभी पौधे लंबे थे तथा पुनः जब F, पीढी के दो पौधों का संकरण किया गया तब F2 पीढ़ी के पौधे या तो लंबे या बौने थे। लंबे तथा बौने का अनुपात 3-1 था। कोई भी पौधा बीच की ऊँचाई का नहीं था। अर्थात् लंबे/बौनेपन का लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं।

प्रश्न 3. एक ‘A-रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग – ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग -A अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर: का स्पष्टीकरण दीजिए।

उत्तर: नहीं, यह सूचना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि

  1. यदि रक्त समूह A प्रभावी हो तथा रक्त समूह O अप्रभावी तब भी पुत्री का रुधिर समूह (वर्ग) O हो सकता | है।।
  2. यदि रक्त वर्ग A अप्रभावी परंतु रक्त वर्ग O प्रभावी हो तब भी पुत्री का रक्त वर्ग O हो सकता है।

प्रश्न 4. मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?

उत्तर:  बच्चे में लिंग को लिंग गुणसूत्र निर्धारित करता हैं | मानव में गुणसूत्र निर्धारित करता हैं | मानव में गुणसूत्र के 23 जोंडे होते हैं | जिसमें से 1 जोड़ा लिंग गुणसूत्र का होता हैं सित्रयों में लिंग गुणसूत्र (xx) होते हैं | लेकिन पुरूषों में लिंग गुणसूत्र (xy) होते हैं सभी बच्चे माँ से “x” गुणसूत्र पाए जाते है| परन्तु पिता से “X” या “Y” कोई भी |इस प्रकार पिता का गुणसूत्र निर्णय लेता है कि बच्चा बेटा है या बेटी |

अथवा

मानवों में लिंग का निर्धारण विशेष लिंग गुण सूत्रों के आधार पर होता है। नर में XY गुण सूत्र होते हैं और मादा में XX गुण सूत्र विद्यमान होते हैं। इससे स्पष्ट है कि मादा के पास Y गुण सूत्र होता ही नहीं है। जब नर-मादा के संयोग से संतान उतपन्न होती है तो मादा किसी भी अवस्था में नर शिशु को उतपन्न करने में समर्थ हो ही नहीं सकती क्योंकि नर शिशु में XY  गुणसूत्र होने चाहिएँ।
निषेचन क्रिया में यदि पुरुष का X लिंग गुण सूत्र स्त्री के X लिंग से मिलता है तो इससे XX जोड़ा बनेगा अत: संतान लड़की के रूप में होगी लेकिन जब पुरुष का Y लिंग गुण सूत्र स्त्री के X लिंग गुण सूत्र से मिलकर निषेचन करेगा तो XY बनेगा। इससे लड़के का जन्म होगा। किसी भी परिवार में लड़के या लड़की का जन्म पुरुष के गुण सूत्रों पर निर्भर करता है क्योंकि Y गुण सूत्र तो केवल उसी के पास होता है।

अभ्यास

प्रश्न 1. मेंडल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफ़ेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे-बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWw
(d) TtWw

उत्तर: (c) TtWW

प्रश्न 2. एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग को लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर: की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: नहीं, यह बताना संभव नहीं है कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी जब तक कि दोनों प्रकार के विकल्पों का पता न हो। ऐसा भी संभव है कि जनक (माता-पिता) में दोनों ही विकल्प हल्के रंग की आँखों के हों, क्योंकि लक्षण की प्रतिकृति दोनों जनकों (माता-पिता) से वंशानुगत होती हैं, अप्रभावी तभी होंगे, जब दोनों से प्राप्त जीन अप्रभावी हों। अतः हम केवल अनुमान लगा सकते हैं।

प्रश्न 3. कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।

उत्तर: काले रंग के नर और सफ़ेद रंग की मादा के संयोग से उत्पन्न यदि सारे पिल्ले काले रंग के हों तो कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग काला हो होगा। तीन कुत्ते और एक कुत्ता सफ़ेद होगा। यह दर्शाता है कि काला रंग प्रभावी रंग है।
कुत्तों के अलग-अलग रंगों का कारण अविकल्पी जीनों कि आपसी क्रिया के कारण होता है जसिमे F2 अनुपात 12:3:1 होता है। इसलिए शुद्ध नस्लों के बीच संकरण कराए बिना किसी सही-स्टिक निर्णय तक नहीं पहुंचा जा सकता।

प्रश्न 4. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?

उत्तर: लैंगिक जनन क्रिया में क्रोमोसोम (गुणसूत्र) अर्धसूत्री विभाजन द्वारा दो भागों में बँटे जाते हैं और जब निषेचन क्रिया होती है, तो युग्मनज में आधे गुणसूत्र पिता से और आधे गुणसूत्र माता से आकर आपस में संयोजित हो जाते हैं। अर्थात् नर से (23 गुणसूत्र) तथा मादा से (23 गुणसूत्र) मिलकर संतति में 46 गुणसूत्र होते हैं तथा बराबरी की भागीदारी होती है। यही कारण है कि प्रत्येक पीढी के लक्षणों में विभिन्न्ताएँ आती रहती हैं।

 Extra Questions

प्रश्न 1: वे कौन से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?

उत्तर:  विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

(i) यदि लक्षण जीवित रहने में सहायता करता है, तो यह जनसंख्या में बढ़ेगा तथा प्रकृति इसका चयन कर लेगी।

(ii) इन परवाह-विभिन्न जनसंख्याओं के बीच संकरण से, एक ही गति के जीवों में जीनों का आदान-प्रदान होगा इससे विभिन्नताएँ व लक्षण बढ़ेंगे।

(iii) किसी जिन के विभिन्न विकल्प किसी जनसंख्या में अचानक परिवर्तित होते हैं।

अथवा

निम्नलिखित तरीकों द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है।

  1. प्राकृतिक चयन (Natural selection)-प्रकृति द्वारा लाभप्रद विविधताओं वाली समष्टि को सतत् बनाए रखना प्राकृतिक चयन कहलाता है। वे लक्षण जो किसी व्यष्टि जीव के उत्तर:जीविता तथा प्रजनन में लाभदायक होती हैं, अगली पीढ़ी (संतति) में हस्तान्तरित (passed on) हो जाती हैं। परंतु जिनसे कोई लाभ नहीं होता वे लक्षण संतति में नहीं जाते।
    उदाहरण-जितने अधिक कौए होंगे उतने अधिक लाल शृंग उनके शिकार बनेंगे तथा समष्टि में हरे भृगों की संख्या बढ़ती जाएगी, क्योंकि हरी पत्तियों की झाड़ियों में हरे भुंग को कौए नहीं देख पाते हैं।
  • आनुवंशिक विचलन (Genetic drift)-कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटना के कारण किसी समष्टि के ज्यादातर जीव मर जाते हैं ऐसी स्थिति में जीन सीमित रह जाते हैं इसके कारण उस समष्टि का रूप बदल जाता है तथा उनकी संतति में केवल जीवित सदस्यों के लक्षण ही दिखाई देते हैं। इसे आनुवंशिक विचलन (Genetic drift) कहा जाता है। जैसे-महामारी तथा परभक्षण (Predation) आदि की स्थिति में।
  • विभिन्नताएँ एवं अनुकूलन-विभिन्नताएँ एवं अनुकूलता पर्यावरण में जीवों की उत्तर:जीविता कायम रखने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 2: एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?

उत्तर: केवल वे ही लक्षण वंशानुगत होते हैं जो जनन कोशिकाओं के DNA द्वारा अगली पीढ़ी में जाते हैं। उपार्जित लक्षण का जनन कोशिका के जीन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, कायिक ऊतकों में होने वाले परिवर्तन, लैंगिक कोशिकाओं के DNA में नहीं जा सकते।

प्रश्न 3: बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से चिंता का विषय क्यों है?

उत्तर: बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से इसलिए चिंता का विषय है, क्योंकि यदि बाघ विलुप्त (extinct) हो गए, तो इसके स्पीशीज़ का जीन भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा तथा बाघों के स्पीशीज़ को पुनः वापस ला पाना असंभव होगा। हमारी अगली पीढी बाघ को नहीं देख पाएगी।

प्रश्न 4: वे कौन-से कारक हैं, जो नयी स्पीशीज़ के उद्भवे में सहायक हैं?

उत्तर: नयी स्पीशीज़ के उद्भव में सहायक कारक निम्न हैं
(a) जीन प्रवाह (genetic flow) का स्तर कम होना।
(b) प्राकृतिक चयन (वरण) (Natural selection)
(c) विभिन्नताएँ।
(d) भौगोलिक पृथक्करण के कारण जनन पृथक्करण (Reproductive isolation)
(e) आनुवंशिक विचलन (genetic drift)

प्रश्न 5: क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?

उत्तर: नहीं, भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता, क्योंकि ये पौधे दूसरे पौधों पर आगे जनन प्रक्रिया के लिए निर्भर नहीं करते हैं।

अथवा

भौतिक लक्षण भौगोलिक पृथक्करण द्वारा प्रभावित होते है | और इनमें विभिन्नता जाति उद्र्भव का एक अन्य कारण हो सकता है परन्तु मुख्य कारण डी.एन.ए  प्रतिकृति के दौरान उनमें परिवर्तन आना होता है | स्वपरागित स्पीशीज में नई पीढियों में नए बदलाव या विभिन्नताएँ उत्पन्न होने की उम्मीद बहुत कम होती है |

प्रश्न 6: क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?

उत्तर: नहीं, क्योंकि अलैंगिक जनन करने वाले जीवों को जनन के लिए किसी अन्य जीव की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

अथवा

अलैंगिक जनन में उत्पन्न जिव लगभग एक दुसरे के सामान होते है तथा उनमें बहुत थोड़ा अन्तर होता है | इस क्रिया में विभिन्नताएँ DNA प्रतिकृति के दौरान  ही होती है तथा ये विभिन्नताएँ बहुत कम होती है |  भौगोलिक पृथक्करण इनमें जाति उद्र्भव का प्रमुख कारक हो सकता है क्योंकि इसके कारण ही नए वातावरण में जीवित रहने वी जीव अपने अन्दर नए उत्पन्न करते है |

प्रश्न 7: उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका हम दो स्पीशीज़ के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं?

उत्तर: समजात अंगों की उपस्थिति से हमें दो स्पीशीज़ के सदस्यों में विकासीय संबंध स्थापित करने में सहायता मिलती है। उदाहरण- पक्षियों, सरीसृप एवं जल-स्थलचर (Amphibians) की तरह स्तरधारियों के चार पैर (पाद) होते हैं। सभी में पैरों की आधारभूत संरचना एक समान होती है, परंतु कार्यों में भिन्न होते हैं। ऐसे अंग समजात अंग कहलाते हैं। ये अभिलक्षण ईंगित करते हैं कि वे समान जनक से वंशानुगत हुए हैं।

प्रश्न 8: क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?

उत्तर: नहीं, वे अंग जिनकी आधारभूत संरचना समान परंतु कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। लेकिन तितली और चमगादड़ के पंखों की आधारभूत संरचना भिन्न हैं, परंतु ये कार्य में एक समान हैं। इसलिए इन्हें समरूप अंग कहते हैं।

प्रश्न 9: जीवाश्म क्या है? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं।

उत्तर:  मृत जीवों के अवशेष ,चट्टानों पर के चिन्ह या उम्नके साँचे व शरीर की छाप जो हजारों साल पूर्व जीवित थे | इस तरह के सुरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते है | ये जीवाश्म हमें जैव – विकास प्रकम के बारे में कई बातें बताते है जैसे कौन से जीवाश्म नवीन है तथा कौन से पुराने , कौन सी स्पीशीज विलुप्त हो गई है | ये जीवाश्म विकास विभिन्न रूपों तथा वर्गों कभी वर्णन करते गुणों को भी ज्ञात कर सकते है |

अथवा

कभी-कभी जीव अथवा उसके कुछ भाग भूपटल की कठोर सतहों के बीच दब जाती हैं, जिसके कारण उसका अपघटन नहीं होता है तथा वे परिरक्षित (Preserved) रूप में मिलती हैं, जिन्हें जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्म जैव-विकास के लिए एक प्रमाण (evidence) प्रदान करता है, जो इसे समझने में सहायता करता है। उदाहरण के लिए-आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) एक पक्षी जीवाश्म जो पक्षी की तरह दिखते हैं, परंतु इसमें अनेक ऐसे लक्षण हैं जो सरीसृप में पाए जाते हैं। इस तरह यह पक्षी तथा सरीसृप के बीच एक जैव-विकास संबंध (evolutionary relation) की कड़ी स्थापित करता है तथा प्रमाणित करते हैं कि पक्षी बहुत निकटता से सरीसृप से संबंधित हैं।

प्रश्न 10: क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं?

उत्तर: आधुनिक मानव स्पीशीज़ ‘होमो सेपियंस” का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। कुछ हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने अफ्रीका छोड़ दिया, जबकि कुछ वहीं रह गए। वे अलग-अलग देश के वातावरण में फैल गए जिसके कारण उनका आकार, आकृति रंग-रूप भिन्न हो गए। इन विविधताओं के बावजूद वे परस्पर सफल लैंगिक जनन (interbreeding) करने में समर्थ हैं तथा बच्चे पैदा कर सकते हैं, जिसके आधार पर उन्हें एक स्पीशीज़ के सदस्य कहा जाता है।

प्रश्न 11: विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर: की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: जब पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ था तब जीवाणु सबसे पहले बनने वाले जिव थे। युगों बाद वे अभी भी अपना अस्तित्व कायम रखे हुए हैं। उन्होंने पर्यावरण में आने वाले सभी परिवर्तनों को सफलतापूर्वक झेला है और उनके अनुसार अनुकूलन किया है इसलिए वे विस्तार के आधार पर पूर्ण रूप से सफ़ल और समर्थ हैं। इसी प्रकार मकड़ी, मछली तथा चिंपैंज़ी ने भी अपने-अपने जीवन को विपरीत परिस्थितियों में ढालने के लिए अनुकूलन किया है। इसलिए सभी का शारीरिक अधिकल्प उत्तम है। किसी को भी शारीरिक अधिकल्प निकृष्ट नहीं कहा जा सकता।

अथवा

जैव विकास में यह प्रवृत्ति दिखाई देती है कि समय के साथ-साथ उसके शारीरिक अभिकल्प की जटिलता में वृद्धि होती है। इस आधार पर चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प उत्तम प्रतीत होता है, परंतु प्रतिकूल एवं अत्यंत कठिन परिस्थितियों में उत्तर जीविता की दृष्टि से सरलतम अभिकल्प वाला एक समूह-जीवाणु-विषम पर्यावरण जैसे ऊष्ण झरने, गहरे समुद्र के गर्म स्रोत तथा अंटार्कटिका की बर्फ में भी पाए जाते हैं। अतः यह आवश्यक नहीं कि जटिल शारीरिक अभिकल्प वाले जीव जैवविकासीय दृष्टि से सरल शारीरिक अभिकल्प वाले जीवों से उत्तम हों। क्योंकि ये कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रह पाते हैं।

प्रश्न 12: समजात अंगों का उदाहरण है
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपरोक्त सभी

उत्तर: (d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 13: विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किस से अधिक समानता है? ।
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु

उत्तर: (d) चीन के विद्यार्थी।

प्रश्न 14: जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन आपस में किस प्रकार परस्पर संबंधित है।

उत्तर: विभिन्न जीवों के बीच समानताओं एवं विभिन्नताओं के आधार पर ही उनका वर्गीकरण करते हैं। दो स्पीशीज़ के बीच जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ होंगी, उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।

प्रश्न 15: समजात अंग एवं समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर: समजात अंग (Homologous organs) -विभिन्न जीवों में ऐसे अंग जिनकी समान आधारभूत संरचना होती है, परंतु कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। जैसे- मेंढक, पक्षी एवं मनुष्य के अग्रपादों में अस्थियों की समान आधारभूत संरचना होती है, परंतु इनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं।

समरूप अंग (Analogous organs) -ऐसे अंग जो एक-समान कार्य संपन्न करते हैं, परंतु संरचनात्मक रूप से भिन्न होते हैं, उन्हें समरूप अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, कीट के पंख तथा पक्षी के पंख।

अथवा

समजात अंग: अंग जो उत्पत्ति तथा संरचना में समान होते हैं तथा कार्य में भिन्न हो सकते हैं। समजात अंग कहलाते हैं।
उदाहरण: (i) पक्षी के पंख तथा घोड़े के अग्रपाद।
(ii) मनुष्य की बाजू तथा गाय के अग्रपाद।
(iii) मेंढ़क के अग्रपाद तथा पक्षी के पंख।

समरूप अंग: वे अंग जो समान कार्य करते हैं तथा देखने में भी समान हैं लेकिन उनकी उत्पत्ति और संरचना भिन्न है, समरूप अंग कहलाते हैं।
उदाहरण: (i) कीट के पंख तथा पक्षी के पंख।
(ii) कीट के पंख तथा चमगादड़ के पंख।
(iii) चने के पौधे तथा मटर के पौधे में प्रतान।
(iv) चने के पौधे तथा अंगूर की बेल में प्रतान।

प्रश्न 16: विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?

उत्तर: विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्मे के निम्नलिखित महत्त्व हैं

  1. पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए जाने वाले जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए हैं। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि किस जीव का उद्भव पहले तथा किसका बाद में हुआ।
  2. “फॉसिल डेटिंग’ विधि से भी जीवाश्म का समय निर्धारण किया जाता है तथा जीव के समय-काल का पता चलता है।
  3. जीवाश्म-आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) दो भिन्न प्रकार के स्पीशीज़ के बीच एक कड़ी (link) दर्शाते हैं।
  4. जीवाश्मों से जीवों और उनके पूर्वजों के बीच विकासीय विशेषकों को स्थापित करने में सहायता मिलती है।

अथवा

विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। युगों पहले जो जीव ऐसे वातावरण में चले गए थे जहां उनका पूरा अपघटन नहीं हुआ था तो  उन के शरीर की छाप चट्टानों पर सुरक्षित रह गई। वे परिरक्षित जीवाश्म ही जीवाश्म कहलाते। हैं। जब जीवाश्मों की खुदाई से प्राप्ति की जाती है तो उनकी प्राप्ति की गहराई से पता लग जाता है कि वह लगभग कितना पुराना है। ‘फॉसिल डेटिंग’ इस काम में सहायक सिद्ध होती है। जो जीवाश्म जितनी अधिक गहराई से प्राप्त होगा वह उतना ही पुराना होगा। लगभग 10 करोड़ वर्ष पहले समुद्र तल में अकशेरुकी जीवों के जो जीवाश्म प्राप्त होते हैं वे सब से पुराने हैं। इस के कुछ मिलियन वर्ष बाद जब डायनोसौर मरे तो उनके जीवाश्म अकशेरुकी जीवों के जीवाश्मों से ऊपरी सतह में बने। इसके कुछ मिलियन वर्ष बाद जब घोड़े के समान जीव जीवाश्मों में बदले तो उन्हें डायनोसौरों के जीवाश्मों से ऊपर स्थान मिला। इसी से उनका विकासीय संबंध स्थापित होता है।

प्रश्न 17: किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?

उत्तर: अजैविक (अकार्बनिक) पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति ये विचार सर्वप्रथम एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन ने 1929 में प्रस्तुत किए। उसके अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के ठीक पश्चात, इस तरह की परिस्थितियाँ उपलब्ध थीं जिन्होंने जीवन की उत्पत्ति में सहायता की। उन परिस्थितियों में अजैविक पदार्थों से सरल व जटिल प्रकार के कार्बनिक यौगिक बने।

प्रमाण: स्टेनले एल. मिलर तथा हेराल्ड सी. उरे ने 1953 में इसका प्रमाण प्रस्तुत किया।
उन्होंने अजैविक पदार्थों; जैसे H2O, CO2, NH3, HCN के मिश्रण में से विद्युत् गुजारी तथा स्पार्किंग करवाई। इसके पश्चात उन्होंने इसके उत्पादों को गर्म पानी में संघनित किया। उस मिश्रण का जब विश्लेषण किया गया तो उन्होंने उसमें एमिनो अम्ल, पॉलीपेप्टाइड, प्रोटीन, लिपिड, पॉलिसैकराइड; जैसे अनेकों यौगिकों को पाया। आज जीवों में पाए जाने वाले जटिल यौगिक भी इस प्रकार के जीवों से ही बने हैं।

अथवा

सन् 1929 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जे .बी.एस. हाल्डेन ने बताया कि शायद कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेष्ण हुआ जो जीवो के लिए आवश्यक थे | प्राथमिक जीव अन्य रासायनिक संश्लेष्ण द्वारा उत्पन्न  हुए होगें | इसके आमेनिया , मीथेन , तथा हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु परन्तु ऑक्सीजन के नंही थे | 100० C से कम ताप पर गैसों के मिश्रण में चिंगारियां उत्पन्न  करने पर एक सप्ताह बाद 15 प्रतिशत कार्बन सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल गए | इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं को बनाते हैं | इस प्रकार अजैविक पदार्थो से जीवों की उत्पति हुई |

प्रश्न 18: अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं। व्याख्या कीजिए यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों में विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?

उत्तर: अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थाई होती हैं। अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतान में जाते हैं और वे बिना परिवर्तन हुए पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं। लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है जिनमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे पर जब उनमें से अनेक ने अफ्रीका छोड़ दिया और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताओं के कारण उनकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।

अथवा

अलैंगिक जनन में केवल एक ही जनक से DNA प्रतिकृति होती है, जिसके कारण उनमें बहुत अधिक समानताएँ होती हैं; जैस- गन्ने के पौधे। इनमें थोड़ी बहुत विभिन्नताएँ प्रतिकृति बनने के दौरान त्रुटियों के कारण होती है, जो बहुत न्यून (कम) होती हैं। परंतु लैंगिक जश्न में दो जनक के युग्मकों से प्राप्त हुए DNA का संलयन होता है, जिसके कारण संतति में बहुत अधिक विभिन्नताएँ आ जाती हैं। विभिन्नताओं का प्राकृतिक चयन (natural selection) होता है। अनुकूल विभिन्नताएँ पीढ़ी-दर-पीढी संचित होती रहती हैं तथा एक नई प्रजाति के रूप में विकसित होती हैं। स्पष्टतः ये विभिन्नताएँ वंशानुगत होती हैं तथा जैव विकास को प्रभावित करती हैं।

अथवा

अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थाई होती हैं। अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतान में जाते हैं और वे बिना परिवर्तन हुए पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं। लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है जिनमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे पर जब उनमें से अनेक ने अफ्रीका छोड़ दिया और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नतओं के कारण उसकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।

प्रभावित करने के कारण/आधार:
(i) लैंगिक जनन में DNA की प्रतिकृति में हुई त्रुटियों के कारण विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(ii) नर और मादा के क्रॉसिंग ओवर के समय समजात गुणसूत्रों के समान भाग आपस में बदल जाते हैं।
(iii) संतान को अपने माता-पिता से बराबर आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त होता है जिसमें जीन परस्पर क्रिया कर अनेक नए विकल्पों को जन्म दे सकती है।
(iv) संतान के लिंग और विभिन्नताएँ सदा इस संयोग पर निर्भर करती हैं कि माता-पिता का कौन-सा मादा युग्मक नर शुक्राणु के साथ संयोजित होगा।

प्रश्न 19: केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?

उत्तर: हाँ, वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। उत्तर जीविता में लाभ वाली विभिन्नताओं का ही प्राकृतिक चयन होता है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है उदाहरण के लिए, प्रारंभ में केवल एक हरे भुंग थे। कौए हरी पत्तियों में हरे भुंग को नहीं देख पाते हैं। अतः इन्हें नहीं खा पाते हैं, जिससे शृंगों की समष्टि में लाल भूगों की समष्टि की अपेक्षा हरे भूगों की संख्या बढ़ती जाती है। अर्थात्, लाल भृग तथा नीले भृग की तुलना में हरे भुंग के लिए उत्तर जीविता (survival) के लिए लाभ है।

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